भगवान गणेश हिंदू धर्म के सबसे लोकप्रिय और प्रिय देवताओं में से एक जिन्हें गणपति, विनायक, विघ्नहर्ता और एकदंत जैसे नामों से भी जाना जाता है। उनका सिर हाथी का है और उन्हे सभी हिंदू देवताओं में सबसे अधिक आसानी से पहचाना जा सकता हैं। वह भौतिक संपदा के अधिष्ठाता और आध्यात्मिकता के स्वामी हैं। वह अपने भक्तों के लिए सभी बाधाओं को हटाने वाले है। महादेव भगवान शिव और देवी शक्ति मां पार्वती के पुत्र के रूप में जन्मे गणेश के जन्म की कहानी पुराणों में मिलती हैं। जबकि वामन पुराण जैसे पौराणिक ग्रंथों के अनुसार शिव की आत्मा ने गणेश को जन्म दिया। वहीं मत्स्य पुराण के अनुसार माता पार्वती ने गणेश की है रचना हैं। भगवान गणेश के जन्म से जुड़ी भिन्न-भिन्न मान्यताओं के इतर एक अवधारणा है जहां सभी ग्रंथ एक दूसरे से सहमत होते है वह है भगवान गणेश की आराधना से दूर होने वाले विघ्न और रिद्धि सिद्धि दे कर मनुष्यों को सुख शांति प्रदान करना।
शैव धर्म के अनुयायियों का मानना है कि गणेश रीढ़ की हड्डी के आधार पर मूलाधार चक्र में विराजमान हैं और मनुष्य की आध्यात्मिक प्रगति को सुविधाजनक बनाते हैं। मूलाधार चक्र में बैठकर वह उच्च चक्रों और चेतना के उच्च स्तरों के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करते है। गणेश एक प्यारे और मिलनसार देवता हैं, जो प्रार्थना, ध्यान और चिंतन के माध्यम से आसानी से उपलब्ध हैं। उसे प्रसन्न करना और उससे संपर्क करना आसान है क्योंकि वह हमारे पृथ्वी तल के करीब सूक्ष्म दुनिया में रहते है और इस दुनिया और उच्चतर के बीच एक संपर्क कड़ी के रूप में कार्य करते है। शक्ति तंत्र के अनुसार सृष्टि में उतने ही गणेश हैं जितने वर्णमाला के अक्षर हैं। इससे पता चलता है कि गणेश विभिन्न स्तरों और दुनियाओं में गणों या संस्थाओं के समूहों के प्रमुख के रूप में मौजूद हैं जो उनका मार्गदर्शन करते हैं और उन्हें आदिम अस्तित्व शिव की ओर ले जाते हैं। आइए गणेश चतुर्थी 2023 पर भगवान गणेश के कुछ कुछ ऐसे मंत्रों के बारे में जानें जिनका जाप कर आप अधिक आसानी से भगवान गणेश और उनका आषीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
1.
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥
2.
ॐ ग्लौम गौरी पुत्र, वक्रतुंड, गणपति गुरु गणेश।
ग्लौम गणपति, ऋद्धि पति, सिद्धि पति करो दूर क्लेश ।।
3.
त्रयीमयायाखिलबुद्धिदात्रे बुद्धिप्रदीपाय सुराधिपाय।
नित्याय सत्याय च नित्यबुद्धि नित्यं निरीहाय नमोस्तु नित्यम्।
4.
गणपूज्यो वक्रतुण्ड एकदंष्ट्री त्रियम्बक:।
नीलग्रीवो लम्बोदरो विकटो विघ्रराजक :।।
धूम्रवर्णों भालचन्द्रो दशमस्तु विनायक:।
गणपर्तिहस्तिमुखो द्वादशारे यजेद्गणम।।’
5.
महाकर्णाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।
गजाननाय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दंती प्रचोदयात्।।