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आश्लेषा नक्षत्र

आश्लेषा (कर्क राशि में 16°40′ से 30°00′ तक)

आश्लेषा नक्षत्र, डेल्टा, मू, रो, सिग्मा व जीटा-हाइड्रा आदि तारों के वृत्त द्वारा प्रदर्शित होता है| ज्योतिष में आश्लेषा नक्षत्र कर्क राशि के अंतर्गत आता है| इस नक्षत्र का प्रतीक एक कुंडली मारा हुआ सर्प है| इस नक्षत्र के अधिपति देव नाग हैं जो ज्ञान से संबंधित हैं| सर्प कुंडलिनी शक्ति का प्रतीक है जो आश्लेषा नक्षत्र का वास्तविक सार है| ज़हर, छल, सहजज्ञान, अंतर्दृष्टि, कामुकता आदि सभी गुण आश्लेषा नक्षत्र में समाहित हैं| यह नक्षत्र मौलिक प्रकृति का प्रतिनिधित्व करता है तथा पूर्वजन्म व आनुवंशिक विरासत से भी संबंधित है| आश्लेषा नक्षत्र की उर्जा को समझना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि यह रहस्यमय व संदिग्ध है| फिर भी इस नक्षत्र में पैदा लोग प्रायः चतुर समीक्षक होते हैं| वे खतरे को तुरंत भांप लेते हैं तथा परिवार व मित्रों के प्रति सुरक्षात्मक होते हैं| आश्लेषा नक्षत्र में पैदा लोगों का भोजन के प्रति लगाव होता है तथा वे भूख को बर्दाश्त नही कर पाते हैं| यह परिवर्तन व चिकित्सीय उर्जा से भरा एक गूढ़ प्रकृति का नक्षत्र है|

सामान्य विशेषताएँ: शोध और लेखन में कुशल, तीव्र बुद्धि, रहस्यमय मनोरंजन करने की क्षमता।
अनुवाद: “अटेरना”, “गुथना”
प्रतीक: कुंडल मारे हुए सर्प; वृत्त; पहिया
पशु प्रतीक: बिल्ला
अधिपति देव: नाग, ज्ञान के देवता नाग
शासक ग्रह: बुध
बुध ग्रह के अधिपति देव: विष्णु
प्रकृति: राक्षस(दानव)
ढंग: सक्रिय
संख्या: 9
लिंग: स्त्री
दोष: कफ
गुण: सात्विक
तत्व: जल
प्रकृति: कठोर, तीव्र व भयानक
पक्षी: छोटी नीली चिड़िया
सामान्य नाम: नागकेसर (लाल)
वानस्पतिक नाम: कैलॉफ़्लुम इनोफाइलम
बीज ध्वनि: डी, डू, डे, डो
ग्रह से संबंध: कर्क राशि के स्वामी के रूप में चंद्रमा इस नक्षत्र से संबंधित है|

प्रत्येक नक्षत्र को चार चरणों में विभाजित किया जाता है जिन्हें पद कहते हैं| आश्लेषा नक्षत्र के विभिन्न पदों में जन्म लेने वाले लोगों के अधिक विशिष्ट लक्षण होते हैं:

Aslesha Nakshatra Hindi

पद:

प्रथम पद कर्क राशि का 16° 40′ – 20° 00′ भाग गुरु ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: डी
सूचक शब्द: परिश्रमी
द्वितीय पद कर्क राशि का 20° 00′ – 23° 20′ भाग शनि ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: डू
सूचक शब्द: महत्त्वाकांक्षी
तृतीय पद कर्क राशि का 23° 20′ – 26° 40′ भाग शनि ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: डे
सूचक शब्द: गुप्त
कर्क राशि का 26° 40′ – 30° 00′ भाग गुरु ग्रह द्वारा
शासित
ध्वनि: डो
सूचक शब्द: भ्रामक

शक्ति: दार्शनिक, बुद्धिमान, बहुमुखी, चालाक, स्वतंत्र, विभिन्न नौकरियां करने वाला, मनोरंजक, विद्वान, नेतृत्व के गुणों से युक्त, यदि प्रेरित , अमीर, रहस्यमय, उन चीजों में महान ऊर्जा रखता है जो उन्हें रुचि रखते हैं, प्रकृति में मोहक, आध्यात्मिक से लाभ प्राप्त करते हैं|

कमजोरियाँ: मानसिक रूप से अस्थिर, चिंताजनक, निराशाजनक प्रकृति, धोखेबाज, लापरवाह दृष्टिकोण, असभ्य, उद्दंड, अलोकप्रिय, सामाजिक कौशल का अभाव, नियम तोड़ने वाला, संचय मानसिकता, अधिकारात्‍मक, गुप्त, बातूनी, प्रशंसाहीन, अस्त-व्यस्त व अनुत्पादक, लापरवाह, वियोजित, तुनकमिज़ाज़, अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए धोखा देना, द्वेषपूर्ण, अंतर्दर्शनात्‍मक, एकांतप्रिय, कृतघ्न और मंद बुद्धि|

कार्यक्षेत्र: रसायनज्ञ या रासायनिक अभियंता, विष या खतरनाक सामग्री से संबंधित कार्य, पेट्रोलियम उद्योग, दवा उद्योग, दवा विक्रेता, तम्बाकू उद्योग, चोर, गबनकारी, वेश्या, वयस्क मनोरंजन उद्योग, सरीसृप से जुड़े कार्य, सर्पों के द्वारा जादू दिखाने वाले, शल्य चिकित्सक, प्रच्छन्न कार्य, गुप्त सेवा, वकील , राजनीतिज्ञ, सलाहकार, मनोवैज्ञानिक, सम्मोहन संबंधी कार्य, योग प्रशिक्षक और मायावी|

आश्लेषा नक्षत्र में जन्में प्रसिद्ध लोग: महात्मा गांधी, पॉल मेकार्टनी, बारबरा स्ट्रीसैंड, लैरी फ्लेंट, ऑस्कर वाइल्ड

अनुकूल गतिविधियां: कठोर आचरण से संबंधित गतिविधियाँ, षडयंत्र संबंधी कार्य, जुआ, कीट नियंत्रण, मुकदमा दायर करना, यौन क्रिया, कुंडलिनी योग और बेकार की वस्तुओं का निपटारा करना|

प्रतिकूल गतिविधियां: नई कार्य या सकारात्मक प्रकृति वाली नई परियोजनाएं शुरु करना, व्यापार तथा वित्तीय ऋण का लेन-देन|

पवित्र मंदिर: थिरुन्धुदेवनकुड़ी श्री करकड़ेश्वर

आश्लेषा नक्षत्र से संबंधित यह पवित्र मंदिर भारत में तमिलनाडु के कुंभकोनम के निकट थिरुद्धूदेवनकुड़ी में स्थित है। इस मंदिर को अक्सर स्थानीय लोग नंदनकोइल के नाम से जानते हैं| आश्लेषा नक्षत्र में पैदा हुए लोगों को अपने जीवनकाल में एक बार इस पवित्र मंदिर के दर्शन करके यहाँ पूजा-अर्चना अवश्य करनी चाहिए|

देवी आदि पराशक्ति इस मंदिर में अरुमारुनधुनायकी के रूप में कृपा प्रदान करती हैं। आश्लेषा नक्षत्र कर्क राशि के अंतर्गत आता है जिसमें कई औषधीय गुण हैं तथा जो औषधि लेने के समय सहायता प्रदान कर सकता है| यदि चंद्रमा कृष्णपक्ष के दौरान आश्लेषा नक्षत्र में गोचर करता है तब यह लोगों के लिए अस्वस्थता व रोगों से मुक्त होने का एक शक्तिशाली समय होता है। आश्लेषा नक्षत्र नवग्रह यज्ञ व धनवंतरी पूजा करने के लिए भी शुभ होता है|

आश्लेषा नक्षत्र में मानसिक व शारीरिक दर्द के अतिरिक्त हृदय के दुख से उबरने में सहायता प्रदान करने की क्षमता है। कुछ लोगों को शारीरिक रोगों का सामना नही करना पड़ता परंतु उन्हें मानसिक रोग या उलझन रहती है| आश्लेषा नक्षत्र दिवस पर थिरुद्धूदेवनकुड़ी जाकर देवी अरुमारुनधुनायकी को भोग अर्पित करना ऐसे लोगों के लिए एक सकरात्मक समयकाल होता है| आश्लेषा नक्षत्र दिवस के दौरान भगवान श्री करकड़ेश्वर(शिव का एक रूप) का दूध से अभिषेक करना भी शुभ माना जाता है| इससे गंभीर रोगों की चिकित्सीय प्रक्रिया में सहायता मिलेगी। जो लोग मधुमेह, रक्तचाप, कैंसर, हृदय रोग, गुर्दा रोग या पेट की बीमारियों से पीड़ित हैं वे भगवान शिव को भोग अर्पित करने से लाभान्वित होंगे।

आम तौर पर आश्लेषा नक्षत्र में पैदा लोग रोगों से उबरने के लिए आवश्यक औषधीय पात्र होते हैं। उन्हें थिरुद्धूदेवनकुड़ी मंदिर में देवी अरुमारुनधुनायकी को कुंकुम व भगवान श्री करकड़ेश्वर को विभूति अर्पित करनी चाहिए| वे मंदिर न जा सकने वाले अस्पताल के मरीजों को भी विभूति या कुंकुम बाँट सकते हैं| यह बीमारी से उबरने के लिए एक शक्तिशाली उपाय है| मंगलवार, अमावस्या व कृष्णपक्ष के दौरान आने वाले आश्लेषा नक्षत्र दिवसों पर लोगों को थिरुद्धूदेवनकुड़ी मंदिर में जाकर 36 परिक्रमा करनी चाहिए| इससे भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से उभरने में सहायता मिलेगी|

आश्लेषा नक्षत्र में जन्में लोगों के लिए वेदों द्वारा निर्धारित धूप कमानी नामक जड़ी-बूटी से निर्मित है|

इस धूप को जलाना उस विशिष्ट नक्षत्र हेतु एक लघु यज्ञ अनुष्ठान करने के समान है| एक विशिष्ट जन्मनक्षत्र के निमित किए गए इस लघु अनुष्ठान द्वारा आप अपने ग्रहों की आन्तरिक उर्जा से जुड़कर सकारात्मक परिणाम प्राप्त करने में सक्षम होंगे|

एक विशिष्ट नक्षत्र दिवस पर अन्य नक्षत्र धूपों को जलाने से आप उस दिन के नक्षत्र की ऊर्जा से जुड़कर अनुकूल परिणाम प्राप्त करते हैं| आपको यह सलाह दी जाती है कि आप कम से कम अपने व्यक्तिगत नक्षत्र से जुड़ी धूप को प्रतिदिन जलाएं ताकि आपको उस नक्षत्र से जुड़ी सकारात्मक उर्जा प्राप्त होती रहे|

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