प्राचीन काल से ही मानव जाति ने हमारे सौर मंडल में हमारे दो सबसे उजले और महत्वपूर्ण ग्रह सूर्य और चंद्रमा के साथ-साथ अन्य ग्रहों की गति का भी अनुसरण किया है। इन ग्रहों को आकाश में नग्न आंखों से भी देखा जा सकता था ये ग्रह थे बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति और शनि। आधुनिक युग में हमने अन्य बाहरी ग्रह भी जैसे अरूण, वरूण और यम हालांकि सभी कुंडली गणनाकार अपनी गणनाओं में यम को क्षुद्र ग्रह मानते हुए कुंडली में स्थान नहीं देते है। इन भौतिक ग्रहों के साथ ही वैदिक ज्योतिष में दो छाया ग्रह राहु और केतु को भी बेहद महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। राहु और केतु चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के पारगमन पथ को काटने वाले उत्तरी और दक्षिणी धुव्रों को कहा जाता है।
आइए ज्योतिष के सभी नौ ग्रहों के नाम हिंदी और अंग्रेजी में जानने के बाद इन ग्रहों को महत्व और इनसे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां प्राप्त करें।
1. सूर्य – सन (Sun)
2. चंद्रमा – मून (Moon)
3. बुध – मरक्यूरी (Mercury)
4. शुक्र – वीनस (Venus)
5. मंगल – मार्स (Mars)
6. गुरू – जुपिटर (Jupiter)
7. शनि – सेटर्न (Saturn)
8. राहु – नॉर्थ नोड (north lunar nodes)
9. केतु – साउथ नोड (south lunar nodes)
वैदिक ज्योतिष में ग्रहों के महत्व और उनकी कार्य स्थिति व व्यवहार को दर्शाने के लिए बहुत ही सरल तकनीक का उपयोग किया जाता है। वैदिक ज्योतिष में ग्रहों को काल पुरुष (लौकिक प्राणी) के अंगों के रूप में बहुत ही खूबसूरत और सरलता से दर्शाया गया है। आइए वैदिक ज्योतिष के अनुसार ग्रहों के गुण, दोष, व्यवहार, आचार – विचार और लक्षण जानें।
सूर्य को ग्रहों के राजा के रूप में जाना जाता है, सूर्य सौर मंडल में खुद के प्रकाश से चमकने वाला एकमात्र ग्रह है। वेदों तथा उपनिषदों में जिसे आत्मा कहा गया है उस आत्मा का प्रतीक सूर्य को ही माना गया है। राशि चक्र में सूर्य सिंह राशि के स्वामी है।
सोम, शशि और शीत रश्मि जैसे मानों से पुकारे जाने वाले चंद्रमा को ग्रहों में रानी का दर्जा प्राप्त है। चंद्रमा को मन का कारक माना गया है, मानसिक स्थिति और स्वास्थ्य के साथ चंद्रमा का गहरा संबंध है। चंद्रमा को राशिचक्र में कर्क राशि का स्वामी माना गया है।
मंगल को काल पुरुष के पराक्रम का प्रतीक माना गया है और इसलिए उसे ग्रहों के सेनापति के रूप में भी जाना जाता है। मंगल को उत्साह, साहस, शौर्य और शक्ति का कारक माना जाता है। राशीचक्र में मेष और वृश्चिक के स्वामी भी मंगल ही है।
ग्रह मंडल में युवराज की उपाधि से नवाजे गये बुध को कालपुरूष की बुद्धि के रूप में जाना जाता है। बुध को बुद्धि, ज्ञान और वाक्चातुर्य का कारक भी माना जाता है। राशीचक्र में बुध को मिथुन और कन्या राशि का स्वामी माना गया है।
ग्रह मंडल का सबसे शुभ ग्रह बृहस्पति या गुरु को ग्रहों में अमृत के समान माना गया है। गुरु को कालपुरूष के ज्ञान स्रोत के रूप में गुरु की उपाधि प्रदान की गई है। अत्यंत शुभ ग्रह होने के कारण सामान्य तौर पर ज्यादातर स्थानों पर गुरू को शुभ प्रदान करने वाला ही माना गया है। राशीचक्र में गुरु धनु और मीन राषि के स्वामी है।
धन, वैभव और विलासिता के ग्रह शुक्र को कालपुरूष का सौंदर्य माना गया है। शुक्र को सौन्दर्य एवं प्रेम का अधिष्ठाता और संजीवनी विद्या का कारक माना गया है। सुख, भोग, विलास, वैभव, आनंद प्रमोद सहित सभी कलात्मक कार्यों का कारक शुक्र को ही माना जाता है।
मंद गति से भ्रमण करने वाले शनि को कालपुरूष के रूप में कष्ट का प्रतिरूप माना गया है। शनि को दुःख, दारिद्रय, आयुष्य, नौकर, मंत्रविद्या, यंत्रविद्या, मनन और वैराग्य का कारक माना गया है। राशि चक्र में शनि को मकर और कुंभ राशियों का स्वामी माना गया है।
भौतिक तौर पर दिखाई नहीं देने के बाद भी राहु को किसी भी अन्य भौतिक ग्रह की तरह ही मान्यता प्राप्त है। राहु को शुद्र ग्रह के रूप में परिभाषित किया जाता है यह प्रबल तृष्णा और प्रेतयोनि का कारक माना गया है। छाया ग्रह होने से राहु को किसी राशि का अधिपति नहीं माना गया है।
केतु भी राहु की तरह भौतिक तौर पर दिखाई नहीं देता लेकिन बुद्धि और हाथ सफाई का पराक्रम करता है। केतु को मोक्ष का कारक माना जता है केतु मन में अप्रत्याषित प्रवृत्ति लेकर आता और अचानक बड़े फेरबदल लेकर आता है। राहु तरह ही केतु को भी राषिचक्र में किसी राषि का स्वामित्व नहीं नहीं है।